पहल
- deepasvi mukt
- 1 अप्रैल 2022
- 1 मिनट पठन
अपडेट करने की तारीख: 31 अग॰ 2023
ओ मेरी बहना सुन, ओ मेरी सखी
ये बात तेरे समझ में क्यों नहीं आती ?
अरे झाँसी, रज़िया बनकर जब लड़ती रही है तू..
क्या कर पाएगी रक्षा तेरी यह छोटी राखी ?
सदियों से औरत को दबाया ही गया।
पुरुषवाद के ताल पर नचाया ही गया।
अब न रुकेगी, न दबेगी, बढ़ती रहेगी तू..
न बनकर रहना तुझको बस पति का इक साया।
अरे याद कर सावित्री को जो कभी नहीं हारी।
तू अपनी पहचान क्या, खो गयी सारी ?
उम्मीदों से, हौसले से बढ़ना है आगे..
तोड़ने है इन ज़ालिम बंदिशों के धागे।
अरे देख उस भंवरी को जो अंत तक झगड़ी
तूने अपनी सोच पर क्या डाली है पगड़ी ?
क्यों अपनी काया की इज़्ज़त कर नहीं पाती ?
चल इन दुष्टों को दिखा दे क़ानून की डंडी।
कब तक सहती रहेगी, इक दिन खुद मिट जाएगी
कब तक दिल जलाएगी, तू अश्क़ बहाएगी ?
अरे रोक दे इन जुल्मों को तू सहने का किस्सा
लाना है एक दौर नया जिसमें खुद को पाएगी।
- दिपा पवार (नेपाली गीत फूलको आँखा माँ के धुन पर आधारित)


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